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गिला शिकवा शायरी

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तुम्हे शिकवा मेरी मौजूदगी से है
ये लो हम गुमशुदा हो गए
मुस्कुराओ तुम अकेले हो अब
ऐसे क्यों गमज़दा हो गए

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कैसी तबियत है गुलिस्तां के फूल की, कांटे पत्तियां झाड़ कर जो मुस्कराना चाहता था
मिट्टी से दूर होकर साफ रहने की हवस, अकेला ही टहनी पर खिलखिलाना चाहता था
माली ने तोड़ कर रौंदा उसे बहुत, बगीचे को अवसाद की बिमारी बनाना चाहता था

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